Kamlanand Jha has written a book on Nagarjun (Maithili's Yatri) where he credits him with giving a new direction to Maithili literature. Chandradhar Sharma Guleri wrote 'Usne kaha tha', a marvellous short story in Hindi, the best one of its time. But his literary corpora is very little in quantity, so if anyone tried to give him credit for giving direction to Hindi short story writing would make himself a laughing stock. And Yatri's Maithili literary corpora is even thinner than Guleri's. Moreover, Rajkamal Chaudhary calls him of the medieval age (Rajkamal Monograph, Subhash Chandra Yadav, Page no 14). He wrote Chitra (25 poems). He wrote, rather hurriedly published his 'Patrahin Nagn Gachh' (44 poems) for Sahitya Akademi Award in Maithili, which he got in 1968. After that he stopped writing in Maithili, so how can he influence anybody when after getting the award one stops writing in that language? This is one example of his instability so far as his ideology is concerned. He became a Buddhist monk when he left for Sri Lanka and became a Brahmin again when he returned after a 2nd sacred thread ceremony performed in his village. This is another example of his instability so far as his ideology is concerned. Kamlanand Jha does not know Maithili literature. His comments should be exposed, as he tries to give a bad name to the great tradition of Maithili literature. There were mainstream writers, but there were writers of parallel tradition also (see below Annexures 1 & 2). He has confused the Sanskrit and Avahatt Vidyapati Thakkurah with the Padavali writer pre-Jyotirishwar Vidyapti. He should read the writing of Vijay Kumar Thakur, a leftist historian, who has given ample light on pre-Jyotirishwar Vidyapati. [My article on Vidyapati in Prabandh Nibandh Samalochna Vol.II (available in Videha Archive) covers all these, the logo of Videha is the photograph of Pre-Jyotirishwar Vidyapati, sketched by Panak Lal Mandal, recipient of Videha Samman for fine arts.]
Annexure 1
चन्दा झा (१८३१-१९०७), मूलनाम चन्द्रनाथ झा, ग्राम- पिण्डारुछ, दरभंगा। कवीश्वर, कविचन्द्र नामसँ विभूषित। ग्रिएर्सनकेँ मैथिलीक प्रसंगमे मुख्य सहायता केनिहार। कृति- मिथिला भाषा रामायण, गीति-सुधा, महेशवाणी संग्रह, चन्द्र पदावली, लक्ष्मीश्वर विलास, अहिल्याचरित आऽ विद्यापति रचित संस्कृत पुरुष-परीक्षाक गद्य-पद्यमय अनुवाद।
१
न्यायक भवन कचहरी नाम।
सभ अन्याय भरल तेहि ठाम॥
सत्य वचन विरले जन भाष।
सभ मन धनक हरन अभिलाष॥
कपट भरल कत कोटिक कोटि।
ककर न कर मर्यादा छोटि॥
भन कवि 'चन्द्र' कचहरी घूस।
सभ सहमत ककरा के दूस।
२
रतिया दिन दुरगतिया हे भोला!
गैया जगतक मैया हे भोला
कटय कसैया हाथ
हाकिम भेल निरदैया हे भोला
कतय लगायब माथ
बरसा नहि भेल सरसा हे भोला
अरसा कए गेल मेह
रतिया दिन दुरगतिया हे भोला
जन तन जिवन संदेह
मुखिया बड़ बड़ सुखिया हे भोला
अन्नबक दुखिया डोल
के सह कान कनखिया हे भोला
सुखिया बिरना टोल
३
अस्त्र शस्त्र रोक आब मामिलाक मारि।
भाइ भाइकेँ पढ़ैछ नित्य नित्य गारि॥
ठक्क लोक हक्क पाब साधु कैँ उजारि।
दैव जे ललाट लेख के सकैछ टारि?
चाही नहि धन, ललितवाम, पकवान जिलेबी,
मनोविनोदक हेतु अमरपति सदन न टेबी।
ई अन्तर अभिलाष हमर करुणामयि देवी
भक्ति भाव सँ सतत अहिंक पदपंकज सेवी॥
अन्न महग, डगमग अछि भारत, हयत कोना निस्तारा
उत्तर पश्चिम भूमि अगम्या पर्वत असह तुषारा।
धर्म-विरोधी सहसह करइछ, कुमत कथा विस्तारा
करथु कृपा जगजननी देवी महिसीवाली तारा॥
मिथिला की छलि की भय गेलि,
याज्ञवल्क्य मुनि, जनक नृपतिवर
ज्ञान भक्ति सौं गेलि।
वाचस्पति मिश्रादि जगद्गुरु
निर्जित बौद्ध झमेलि
से शारदा स्वर्ग जनि गेली
बढ़ल कुविद्या केलि।
वर्णाश्रम विधि ककरहु रुचि नहि
श्रुति श्रद्धाकेँ ठेलि
पूजा पाठ ध्यान वकमुद्रा
सभटा वंचन खेलि।
कह कविचन्द्र कचहरी भरिदिन
बहुत भोग कर जेलि,
कलह कराय धर्म धन नाशे
कलिक दरिद्रा चेलि।
४
मय केहन भेल घोर हे शिव!
गोधन विपति, धरम अवनति देखि कत हिय करब कठोर॥
साधु समाज राजसँ पीड़ित अति हरषित-चित चोर।
अकुलिन लोकेँ धरणि परिपूरित कुलिन समादर थोड़॥
धरम सुनीति प्रीति ककरहु नहि, खलहिक चलइछ जोर।
कन्द-मूल-फल सेहो अब दुरलभ अन्न गेल देशक ओर॥
किछु शुभ साधन बनि नहि पड़इछ थाकल मन, मति भोर।
कह कवि चन्द्र हमर दुख मेटत होयत कृपा शिव तोर॥
५
सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि।
ककर हृदय नहि कलुषित शासन कलि नृप पानि॥
केवल शिव करुणाकर सेवयित नहि जन हानि॥
भक्ति कल्पलति जानह परम परशमनि खानि॥
कतहु विषयमे न लागह त्यागह अनुचित मानि।
सुखसौँ अन्त विलसबह 'चन्द्र' चूड़ रजधानि॥
ANNEXURE 2
१
फतुरीलालक अकाली कविता/ अकाली कवित्त
फतूरीलालक फसली बर्ख १२८१ (१८७३-७४ ई. सन) सालक अकाली कविता
[ग्रियर्सन (मैथिली क्रेस्टोमैथी एण्ड वोकाबुलेरी)]
साल एकासिक वर्णन सुनू/ चौदिस पड़ल अकाल
भेल बरिसात खिन्न ऐ सालक/ कहाँ लगि वरनौँ हाल
रोहिणि आदि थीक बरिसातक/ जेहिँ एला तेहिँ गेला
म्रिगिसिरा मन पुरल मनोरथ/ दै झीसा किछु गेला
अरदड़ा आडम्बर भारी/ गरजत हैं चहु ओर
पुख रुख राखल धरती केर/ भेल बरखा केर ओर
पुनर्वसु थिक बड़ पुनीता/ ओहो बड़ा कसरेस
बिआ बिड़ारक जे किछु उपटल/ धनि बरिसल असरेस
मघा भेल मंगाहिआ कल्लर/ जगभरि के नै जान
पुरबा पूर पछ नै राखल/ ककरा करब बखान
उत्तरा आइ जाय घर बैसल/ सपतौं लै नै बून
हथिआ शृंग मुँड़ दै मूनल/ तनिकौं लागल घून
चितरा चित मित नै राखल/ ओहो भेल डाकू धाती
नाक रंगौलन्हि सभै नछत्तर/ दोम नुकौलन्हि खाती
जोतिष पढ़ि-पढ़ि जे जन ऐलाह/ साधि-साधि भूगोल
रेखागणित बीजसौँ ओआकिफ/ तनि कौँ कच्ची बोल
श्रीराम कृपागति ओहो ने जानथि/ जाहि कृपा सभ काज
पानिक प्रश्न कबौं जौं पुछिऐन्हि/ सेहो कहैत होइन्हि लाज
जेहिखन नदी नाल नै भरले/ तेहिखन रौदी सरती
बिना जले जग किछु नै उपजल/ दगध भेल छथि धरती
ते नर रौदीक आगम बूझल/ जे छल कृषि किसान
दैव बेपच्छ पच्छ नै राखल/ जड़ि कटौलक धान
कोदो मड़ुआ एको ने उपजल/ नै उपजल किछु साम
गम्भड़ी गद्दरि खेतहि सुखाएल/ भेल विधाता वाम
मर्तभुवनमे के कर रच्छा/ कहाँ जाइ केँ भागि
सुखल पताल हाल नै ओतहुँ/ सगरहुँ लागल आगि
धृक जीवन ओइ नृपति इन्द्रकेँ/ जे रोकल गहि पानि
जीवा-जन्तु विकल पुहमीमे/ ताकेँ हो नै आनि
रवी-राय एको नै उपजल/ ने खेढ़ी औ चीन
घर-घर सोच करै नर-नारी/ दुरदिन भेल अब बीन
धनिक लोक सभ मनहि मगन छथि/ राखथि बहुतो ढेरि
हसोथि रुपैया घर कै राखथि/ महगी भेल अब सेर
केओ कुरथी खेत मासु बेसाहल/ जाहि कौड़ि छल अपना
कतेक जना हरिवासर ठानल/ भात बहुत कै सपना
कतेक जना मिलि जनेर बेसाहल/ निरधन बैसल तकइ
भेल धनन्तिरि दूइ फसिल जग/ राहड़ि आओर मकइ
काल पड़ल तिरहुतिमे भारी/ तेँ ई बहि गेल हावा
घर-घर मगन करै नर-नारी/ फाँकि मकइ केर लावा
मालिक और महाजन सभकेँ/ घर-घर ढेरी अन्न
लोक बुझाओन ओहो तकै छथि/ मूँह गरीबक सन
समै देखि बनिआँ सभ सनकल/ डरेँ लगौलक टट्टी
सुन्न दोकान सहरमे परि गेल/ सुन्न भेल सभ चट्टी
सूखल गात बात भौ लटपट/ कतेक बात अब सहना
नर नारी सभ सान तेआगल/ बिकरी भेल अब गहना
मँगटीका खूटी औ तड़की/ नकमुन्नी नै नाक
कटसरि बिछिआ औ झिमझिमिआँ/ बाजूबन्द औ बाक
चन्द्रहार, हैकल औ सिकड़ी/ और घमौरिक दाना
सूति, नवग्रह औ पचखँड़ी/ लशुनी भेल निदाना
तापर दर्बजात नै बचले/ करम भेल निखट्ट
तमघैल, अढ़ैआ औ पिकदानी/ नै तसला औ तटू
बाटी, बट्टा औ पनबट्टा/ भोजन करैक थारी
माधव सीहि सहित सोबरना/ नै बचले घर झाड़ी
धन संपति घर किछु नै बचले/ सभटा पड़ि गेल बंधक
तैओ भूख छुटल नै ककरो/ एहन पेट भेल खंधक
दैब अंश अबतरल कम्पनी/ जा पर राम सहाए
मिथिलापुर बूड़न जब लागय/ से सुनि पहुँचल धाए
खरिद अनाज जहाजहिँ बोझल/ भरती करि करि बोरा
सदर तिलंगा ओआ पर भरती/ और ओलाइति गोरा
हाजीपुरमे लाख हजारम/ कै लाखन हइ पटना
बाजितपुर सुलतानपुर गोला/ नै जानत हौँ केतना
गाड़ी, बैल, छकड़, ऊँट बिहारे/ उबहत हइ सभ दाना
मिसर कन्हैआ केँ पोखरन मे/ पहिलुक अड़ी ठेकाना
श्री लक्ष्मीश्वर सिंह नृपति/ महाराज मिथिलेश
अचल राज दड़िभंगा/ श्रीपति हरहिं कलेश
गाड़ी बैल लाखन हजारन/ ताकेँ परे घड़ेर
पहिलुक गोला मधुबन, भौड़ा/ जफरा और अड़ेर
बेनीपट्टी, औ पचमहला/ कुम्हरौल औ कमतौल
हरिहरपुर, पिड़ारुछ बरनौं/ कारज केतेकाँ बरिऔल
बारि पोखरि, बिरसायर बरनौं/ पण्डौल को नै जान
नवहद, सरिसो ओ भटपुरा, ता सोँ दक्षिण उजान
झंझारपुर, महरैल, कन्हौली/ मधेपुर हइ खास
बेनीपुर, कमान, नरैहिओ/ बरनौं फूलपरास
झमना हइ जगजानित जगमे/ महथा और बछौर
दुहबी औ महिनाथपुर/ और जैनगर तक हइ दौर
बलदेबपुर औ ढंगा बरनौं/ मिरजापुर लघु हाट
सीबीपटी औ कपसीआ/ सदर गोला सौराठ
गुरबाकेँ परबरसी हाकिम/ कर तिरहुतमे आके
नै तो मरते कत नर नारी/ बाले बचे सुखा के
कत मुरदा गरदा मै मिलते/ असंख जीव चल जाता
सर समधी केँ संभा ने लम्भन/ नै बचते जलदाता
सभकेँ सभ उपछै भै गेल/ धुर पोखर औ सड़क
रहि गेल ब्राह्मण सोती पण्डित/ कायथ पछिमा ठाकुर फरक
केओ ओरसिअर नाम लिखाओल/ केओ मोहर्रिर भेँट
धर्म्मकार्यमे लुटथि रुपैआ/ तेँ भेल सभ केर भेँट
केओ जमानत दैकेँ बचलाह/ जिनका अमला नेही
ककरो मारि केँत पिठि तोड़ैन्हि/ उतरैन्हि जन्मक ठेही
ककरहुँ गारत गात सुखाओल/ बहुतो होअय चलाना
मातुपिता घर परिजन रोवय/ बाबू गेलाह जहलखाना
ककरहुँ घर भेल खानातलासी/ भेट मोहर्रिर घोँछ
केओ अदालतिमे डिड़िआइ छथि/ ककरहुँ उपरैन्हि मोँछ
एतना सुनि हाकिम रिसिआओल/ तेँ लागल जन ठीका
नाक रंगौलन्हि सभै मोहर्रिर/ लागल चूनक टीका
जोग, बिकौआ,लौकिक वंशक/ किरिआमंत सुकूल
गाछी, बाँस, बैल औ महिसि/ जगह कैल भकफूल
ताहि रुपैआ सौँ करा गजर/ लै कोरट सौँ रीन
तेँ कारन बहुतो घर झगड़ा/ भाइ भतीजा भीन
आए लाट बहादुर/ औ दड़िभंगा धाम
बाबू औ बबुआन सहित मिलि/ कीन्ह कुमैटी खान
......
......
......
एह सभ संग बैठि कै/ जाय कुमैटी भेल
अजब कार सरकार के/ तिरहुत पहुँचल रेल
बाजितपुरसँ सड़क निकालै/ आये दौड़िह दौड़ी
हहेया गंडक पुल बन्हाए/ आए चौरही चौरी
धर्म्मधीर, बलबीर, कम्पनी/ जानत हइ जगदीशन
लछमी सागर के पोखरिमे/ ताहि कीन्ह इसटीसन
बड़ा लाट कलकत्तेवाले/ श्रीदुर्गा होए संग
आगरा के छोटा लाल बहादुर/ बैठे सभ एकरंग
जुटे कमिश्नर और कलट्टर/ बोलहिं बात नेअंट
एह पाचो इजलास पर बैठे/ संग जात ऐह जंट
खबरि गए अखबार मौँ/ मैथिल के एह हाल
सुनहु फिरंगी अवण दैकेँ/ मेटहु दुख के जाल
हुकुम दीन्ह दोउ लाट को/ सुनहु हमारे बैन
मदति करहु रेआआनको/ क्या बैठे हौ चैन
बड़ा लाट दोउ बीर उठाए/ साहेब औ जरनैल
मेजर मजिस्टर और कलट्टर/ संगजात करनैल
देस देससौँ अन्न मंगाओल/ दीन्ह सभनि के दाम
महामूँग, गहुम औ चाउर/ बजड़ा और बदाम
डोली, पटना औ भटसारे/ दीली औ अजमेर
आगरा और कान्हपुर ढाका/ जहाँ अन्न के ढेर
भए रमाना अन्न तिरहुतिमे/ लादि गाड़ी और बैल
गज, तुरंग, गदहा औ छकड़/ संग सिपाही छैल
छत्री औ पैठान मोगल सभ/ बाँकाबीर रजपूत
सोभा बरनि नजात हइ/ जैसे हनुमन्त दूत
आगे सफर ओ मैना/ पलटन वीर जमान
बरछी औ तरुआरि गहै/ कर गहै तीर कमान
चढ़ि तुरंग पर करै कवाइत/ जमादार होए संग
सोभा बरनि न जात हइ/ देखि तखनुक रंग
करत काम सभ धाममे/ टूट अट सभ लूट
ढाहि भीड़ गाछी सहित/ बान्धै सड़क औ पूल
जिले पटने औ भटसारे/ प्रगन्ना महिसौर
तहाँ बसहिँ एक सज्जन/ तेहि घर जा लक्ष्मी दौड़
श्री द्वारिका प्रशादित/ धर्म्मधीर बुद्धिमान
तहसीलदार कोरट के खासा/ जानहिं सकल जहान
बाबु इसरी प्रसाद दियौटी/ सो मधुबनमे आए
हुकुम दीन्ह सुपरनडेंटकेँ/ टोले टोले होए जाए
मन पँचा मनगर भै लिए/ बहुतो लिए खैरात
धन्य धन्य अंगरेज बहादुर/ सभकेँ जूटल गात
गरिब, गनी, गुरबा, करु जै, जै/ ब्राह्मण देत असीस
श्री रघुनाथ बढ़ै बदसाही/ गदी लाख बरीस
फतुर लाल कवि बरनत हैँ/ एह रौदी के हाल
गौरमिंट गौरनल बहादुर/ तिरहुति राखहिँ बहाल
२
राधाकृष्ण चौधरी (मिथिलाक इतिहास) (विदेह पेटारमे उपलब्ध)
"१७७० क अकाल मिथिलाक इतिहासमे अद्वितीय छल आ मिथिलाक जनसंख्या घटिकेँ एक दम्म कम्म भऽ गेल छल। १८७३-७४ मे पुनः एकटा ओहने अकाल मिथिलामे भेल छल जकर विवरण हमरा फतुरी लाल कविक अकाली कवित्तसँ भेटइयै, अकाली कवित्त अप्रकाशित अछि। अकालकेँ दूर करबाक हेतु आ मजूरकेँ रोजी देबाक हेतु ताहि काल रेलगाड़ीक योजना चलाओल गेल जकरा सम्बन्धमे फतुरीलाल लिखैत छथि-
'कम्पनी अजान जान कलनको बनाय शान।
पवन को छकाय मैदानमे धरायो है॥
छोड़त है अड़ादार बड़ा बीच धाय धाय।
सभेलोग हटाजात केताजात खड़ा है॥
तारकी अपारकार खबरि देत वार वार।
चेत गयो टिकसदार रेल की उवाई है॥
करत है अनोर शोर पीछे कत लगत छोर।
जोर की धमाक से मशीन की बड़ाई है॥
कम्पूसन पहरदार कोथी सब अजबदार।
कोइला भर करल कार धूआँसे उड़ायो है॥
बाजा एक बजन लाग हाथी अस।
पिकन लाग जैसा जो चढ़नदार वैसाधर पायो है॥
गंगाकेँ भरल धार उतरि गयो फतूर पार गाड़ीकी।
अजबकार कवित्त यह बनाया है॥' "
-Gajendra Thakur, editor, Videha (be part of Videha www.videha.co.in -send your WhatsApp no to +919560960721 so that it can be added to the Videha WhatsApp Broadcast List.)
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